मंदिर में वही पहुंचता है, जो धन्यवाद देने जाता हैं, धन्यवाद मांगने नहीं | Adi Shankaracharya
हमें आनंद तभी मिलता है, जब हम आनंद कि, तलाश नही कर रहे होते है | Adi Shankaracharya
सत्य की परिभाषा क्या है ? सत्य की बस इतनी ही परिभाषा है, की जो सदा था, जो सदा है, और जो सदा रहेगा | Adi Shankaracharya
जिस तरह किसी दीपक को चमकने के, लिए दूसरे दीपक की ज़रुरत नहीं होती है, ठीक उसी तरह आत्मा को, जो खुद ज्ञान का स्वरूप है, उसे और क़िसी ज्ञान, कि आवश्यकता नही होती है | Adi Shankaracharya
अज्ञानता के कारण आत्मा सीमित लगती है, लेकिन जब अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है, तब आत्मा के वास्तविक स्वरुप, का ज्ञान हो जाता है, जैसे बादलों के हट जाने पर, सूर्य दिखाई देने लगता है | Adi Shankaracharya
आत्मसंयम क्या है ? आंखो को दुनिया की चीज़ों की, ओर आकर्षित न होने देना, और बाहरी तत्वों को खुद, से दूर रखना | Adi Shankaracharya
मोह से भरा हुआ इंसान एक सपने कि तरह हैं, यह तब तक ही सच लगता है, जब तक वह अज्ञान की नींद में सो रहे होते है, जब उनकी नींद खुलती है, तो इसकी कोई सत्ता नही रह जाती है | Adi Shankaracharya
तीर्थ करने के लिए किसी, जगह जाने की जरूरत नहीं है, सबसे बड़ा और अच्छा तीर्थ, आपका अपना मन है, जिसे विशिष्ट रूप से शुद्ध, किया गया हो | Adi Shankaracharya
हर व्यक्ति को यह ज्ञान होना चाहिए, कि आत्मा एक राज़ा के समान होती है, जो शरीर इन्द्रियों मन बुद्धि, से बिल्कुल अलग होती है, आत्मा इन सबका साक्षी स्वरुप है | Adi Shankaracharya
'जब मन में सत्य जानने, की जिज्ञासा पैदा हो जाती है, तब दुनिया की बाहरी चीज़े, अर्थहीन लगती हैं | Adi Shankaracharya Adi Shankaracharya'
सत्य की कोई भाषा नहीं है, भाषा तो सिर्फ मनुष्य, द्वारा बनाई गई है, लेकिन सत्य मनुष्य का, निर्माण नहीं आविष्कार है, सत्य को बनाना या प्रमाणित, नहीं करना पड़ता | Adi Shankaracharya